चेदि वंश अशोक ने कलिंग युद्ध में विजयी होने के बाद इस राज्य (कलिंग) को मौर्य साम्राज्य में मिलाया था परन्तु अशोक की मृत्यु के बाद अन्तिम मौर्य सम्राटों की कमजोरी से लाभ उठाकर चैत्रराज ने कलिंग को स्वतंत्र कर लिया था. चैत्रराज की तीसरी पीढ़ी में ही खारवेल हुआ जिसका वृतान्त हाथी गुम्फा के शिलालेख में विस्तृत रूप से दिया गया है. यह शिलालेख प्राकृत भाषा में है. इससे कलिंग के सम्राट खारवेल के शासन की घटनाओं के अतिरिक्त उस काल की सामाजिक घटनाओं पर प्रकाश पड़ता है. इससे पता चलता है कि खारवेल जैन धर्म के अनुयायी था और उसका सम्बन्ध प्राचीन राजवंश के चेदि क्षत्रिय से था (यद्यपि चेदि क्षत्रियों प्रभुत्व मुख्यतया बुन्देलखंड में रहा परन्तु उनकी एक शाखा कलिंग में भी जा बसी थी.) वह चौबीस वर्ष की आयु में कलिग का स्वतंत्र शासक बना. चूंकि एक तूफान ने उसकी राजधानी भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि को काफो क्षति पहुंचायी थी इसलिए उसने सर्वप्रथम अपनी राजधानी की मरम्मत कराई. तालाबों और बगीचों को दुबारा बनवाया. खारवेल एक प्रतापी और यशस्वी शासक था. उसने सर्वप्रथम राज्याभिषेक के दूसरे व अपनी विशाल से