Skip to main content

चक्रवात के विषय में विस्तृत जानकारी : CYCLONE INFO IN HINDI

 परिभाषा: चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों तरफ केन्द्र की ओर जाने वाली समवायुदाब रेखाएँ विस्तृत होती हैं. केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है. फलतः परिधि से केंद्र की ओर हवाएँ चलने लगती है. चक्रवात (Cyclone) में हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अनुकूल होती है. इनका आकर प्रायः अंडाकार या U अक्षर के समान होता है. आज हम चक्रवात के विषय में जानकारी आपसे साझा करेंगे और इसके कारण,  प्रकार और प्रभाव की भी चर्चा करेंगे. स्थिति के आधार पर चक्रवातों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है –

  1. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
  2. शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones)

1. उष्ण  कटिबंधीय चक्रवात

उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की अधिकतम बारंबारता पूर्वी चीन सागर में मिलती है और इसके बाद कैरिबियन, हिन्द महासागर और फिलीपिन्स उसी क्रम में आते हैं. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र निम्न्वित हैं –

a) उत्तरी अटलांटिक महासागर – वर्ड अंतरीप का क्षेत्र, कैरबियन सागर, मैक्सिको की खाड़ी, पश्चिमी द्वीप समूह.

b) प्रशांत महासागर – दक्षिणी चीन, जापान, फिलीपिन्स, कोरिया एवं वियतनाम के तटीय क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको तथा मध्य अमेरिका का पश्चिमी तटीय क्षेत्र.

c) हिन्द महासागर – बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, मॉरिसस, मेडागास्कर एवं रियूनियन द्वीपों के क्षेत्र.

उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को कैरबियन सागर में हरिकेन, पूर्वी चीन सागर में टायफून, फिलीपिंस में “बैगयू”, जापान में “टायसू”, ऑस्ट्रेलिया में “विलिबिलि” तथा हिन्द महासागर में “चक्रवात” और “साइक्लोन” के नाम से जाना जाता है.

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषताएँ

  1. इनका व्यास 80 से 300 किमी. होता है. कभी-कभी इनका व्यास 50 किमी. से भी कम होता है.
  2. इसकी औसत गति 28-32 किमी. प्रतिघंटा होती है, मगर हरिकेन और टायफून 120 किमी. प्रतिघंटा से भी अधिक गति से चलते हैं.
  3. इनकी गति स्थल की अपेक्षा सागरों पर अधिक तेज होती है.
  4. सामान्यतः व्यापारिक हवाओं के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हैं.
  5. इसमें अनेक वाताग्र नहीं होते और न ही तापक्रम सम्बन्धी विभिन्नता पाई जाती है.
  6. कभी-कभी एक ही स्थान पर ठहरकर तीव्र वर्षा करते हैं.
  7. समदाब रेखाएँ अल्पसंख्यक और वृताकार होती है.
  8. केंद्र में न्यून वायुदाब होता है.
  9. इनका विस्तार भूमध्य रेखा के 33 1/2 उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों तक होता है.

निर्माण संबंधी दशाएँ

  1. एक विशाल गर्म सागर की उपस्थिति जिसके सतह का तापमान कम से कम 27°C हो.
  2. सागर के उष्ण जल की गहराई कम से कम 200 मी. होनी चाहिए.
  3. पृथ्वी का परिभ्रमण वेग उपर्युक्त स्थानों पर 0 से अधिक होनी चाहिए.
  4. उच्चतम आद्रता की प्राप्ति.
  5. उच्च वायुमंडलीय अपसरण घटातलीय अपसरण से अधिक होनी चाहिए.
  6. उध्वार्धर वायु प्रवाह (vertical wind flow) नहीं होनी चाहिए.
  7. निम्न स्तरीय एवं उष्ण स्तरीय विक्षोभ की उपस्थति.

2. शीतोष्ण चक्रवात

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात को गर्त चक्र अथवा निम्न दाब क्षेत्र भी कहा जाता है. इनकी उत्पत्ति दोनों गोलार्धों में 30°C – 65°C अक्षांशों के बीच होती है. इन अक्षांशों के बीच उष्ण वायु राशियाँ एवं शीतल ध्रुवीय वायुराशियाँ जब मिलती है तो ध्रुवीय तरंगों के कारण गर्त चक्रों की उत्त्पति होती. इन चक्रवातों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में वर्कनीम द्वारा ध्रुवीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया. इस सिद्धांत को तरंग सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है.

एशिया के उत्तर-पूर्वी तटीय भागों में उत्पन्न होकर उत्तर-पूर्व दिशा में भ्रमण करते हुए अल्युशियन व उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तटीय भागों पर प्रभाव डालते हैं. उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तटीय भाग से उत्पन्न होकर ये चक्रवात पछुवा हवाओं के साथ पूर्व दिशा में यात्रा करते हैं, तथा पश्चिमी यूरोपीय देशों पर प्रभाव डालते हैं. शीत ऋतु में भूमध्य सागर पर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात सक्रीय हो जाते हैं.इसका प्रभाव दक्षिणी स्पेन, द.फ़्रांस, इटली, बाल्कन प्रायद्वीप, टर्की, इराक, अफ़ग़ानिस्तान तथा उत्तर-पश्चिमी भारत पर होता है.

प्रमुख विशेषताएँ 

  1. इनमें दाब प्रवणता कम होती है, समदाब रेखाएँ V अकार की होती है.
  2. जल तथा स्थल दोनों विकसित होते हैं एवं हज़ारों किमी. क्षेत्र पर इनका विस्तार होता है.
  3. वायुवेग उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से कम होती है.
  4. अधिकतर शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं.
  5. तीव्र बौछारों के साथ रुक-रुक कर वर्षा होती है, जो कई दिनों तक चलती रहती है.
  6. शीत कटिबंधीय चक्रवातों के मार्ग को झंझा पथ  कहा जाता है.
  7. इसमें प्रायः दो वताग्र होते हैं एवं वायु की दिशा वताग्रों के अनुसार तेजी से बदल जाती है.

प्रति चक्रवात क्या होता है?

प्रतिचक्रवात या विरुद्ध चक्रवात वृताकार समदाब रेखाओं द्वारा घिरा हुआ वायु का ऐसा क्रम होता है जिसके केंद्र में वायुदाब उच्चतम होता है और बाहर की ओर घटता जाता है, जिस कारण हवाएँ केंद्र से परिधि की ओर चलती है. प्रति चक्रवात उपोष्ण कटिबंधीय उच्चदाब क्षेत्रों में अधिक उत्पन्न होते हैं मगर भूमध्य रेखीय भागों में इनका पूर्णतः अभाव होता है.

chakrwaat

चक्रवात

शीतोष्ण कटिबंधी चक्रवातों के विपरीत प्रति चक्रवातों में मौसम साफ़ होता है. प्रतिचक्रवातों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं –

  1. इनका आकर प्रायः गोलाकार होता है परन्तु कभी-कभी U आकर में भी मिलते हैं.
  2. केंद्र में वायुदाब अधिकतम होता है और केंद्र तथा परिधि के वायुदाबों के अंतर 10-20 मी. तथा कभी-कभी 35 मीटर होता है. दाब प्रवणता कम होती है.
  3. आकर में प्रतिचक्रवात, चक्रवातों के अपेक्षा काफी विस्तृत होते हैं. इनका व्यास चक्रवातों की अपेक्षा 75% अधिक बड़ी होती है.
  4. प्रतिचक्रवात 30-35 किमी. प्रतिघंटा की चाल से चक्रवातों के पीछे चलते हैं. इनका मार्ग व दिशा निश्चित नहीं होता है.
  5. प्रतिचक्रवात के केंद्र में उच्चदाब अधिक होने के कारण हवाएँ केंद्र से बाहर की ओर चलती है.
  6. उत्तरी गोलार्ध में इनकी दिशा घड़ी की सुई के अनुकूल (clockwise) एवं दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई के प्रतिकूल (anti clockwise) होती है.
  7. प्रतिचक्रवात के केंद्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती है अतः केंद्र का मौसम साफ़ होता है और वर्षा की संभावना नहीं होती है.
  8. प्रतिचक्रवात का तापमान, मौसम वायुराशि के स्वभाव एवं आर्द्रता पर आधारित होता है. ग्रीष्म काल में उष्ण वायुराशि के बन्ने के कारण तापमान ऊँचा और जाड़े में ध्रुवीय हवाओं के कारण तापमान नीचा हो जाता है.
  9. इस चक्रवात में वातगर नहीं बनते हैं.
  10. चक्रवात के सामान प्रतिचक्रवातों के आगमन की सूचना चंद्रमा या सूर्य के चतुर्दिक प्रभामंडल द्वारा नहीं मिल पाती है. इसके विपरीत प्रतिचक्रवात के नजदीक आते ही आकाश से बादल छंटने लगते हैं, मौसम साफ़ होने लगता है तथा हवा मंद पड़ जाती है.
  11.  प्रतिचक्रवात (पूर्व दिशा में चलाने वाले) के अग्र भाग में हवा की दिशा पश्चिमी होती है तथा अपेक्षाकृत उनकी गति कुछ अधिक होती है. प्रति चक्रवात के पृष्ठ भाग में हवा की दिशा पूर्वी होती है तथा गति मंद होती है. यह वायु प्रणाली शीतल चक्रवातों में होती है. गर्म प्रतिचक्रवातों में वायु प्रणाली अविकसित होती है.

आज हमने इस पोस्ट के माध्यम से चक्रवात (Cyclone) की परिभाषा, अर्थ, उत्पत्ति के कारण, प्रकार आदि विभिन्न जानकारियों को आपके समक्ष रखा. आशा है कि आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा.

Comments

Popular posts from this blog

तापमान को प्रभावित करने वाले कारक – FACTORS AFFECTING TEMPERATURE

  आज हम तापमान (temperature) को प्रभावित करने वाले कारकों (factors) की चर्चा करेंगे. किसी क्षेत्र का तापमान क्यों अधिक और क्यों कम होता है, इस बात को हम इस आर्टिकल के द्वारा समझने की कोशिश करेंगे. यदि किसी क्षेत्र का तापमान अधिक है तो इसका साफ़ मतलब होता है कि वहाँ बहने वाली वायु गर्म है. इसलिए क्यों न हम ये जानें कि वायु का तापक्रम किन चीजों से प्रभावित होता है? पृथ्वी के विभिन्न भागों में वायु के तापक्रम पर प्रभाव डालने वाली प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं  – अक्षांश (Latitude) पृथ्वी की उभरी हुई गोलाई के कारण उस पर सभी जगह एक-सी सूर्य की किरणें नहीं पड़तीं. कहीं वे सीधी पड़ती हैं और कहीं तिरछी. सीधी किरणों की अपेक्षा तिरछी किरणें अधिक क्षेत्र में फैलती हैं, फलतः उनसे पृथ्वी पर कम गर्मी उत्पन्न होती है और उसके सम्पर्क में आने वाली वायु कम गर्म हो पाती है. इस चित्र में विषुवतीय (Equator) रेखा पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ रही हैं और ध्रुवों पर तिरछी. ध्रुवों के पास अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्र में किरणें फैलती हैं. साथ ही, विषुवत् रेखा (equator) पर सूर्य की किरणों को वायुमंडल का कम भाग...

पूर्वोत्तर (शीतकालीन) मानसून क्या है? NORTHEAST MONSOON IN HINDI

  पूर्वोत्तर मानसून   (northeast monsoon) अर्थात् शीतकालीन मानसून पिछले दिनों समाप्त हुआ. इस बार कुल मिलाकर इस समय औसत से अधिक वृष्टिपात हुआ. एक बड़ी विरल घटना यह हुई कि जिस दिन  दक्षिण-पश्चिम का मानसून  समाप्त हुआ, उसी दिन शीतकालीन मानसून चालू हुआ. पूर्वोत्तर (शीतकालीन) मानसून क्या है? उत्तर भारत के लोग इस मानसून के बारे में कम जानते हैं. परन्तु यह मानसून भारतीय उपमहाद्वीप की जलवायु प्रणाली का उतना ही स्थायी अंग है जितना कि ग्रीष्मकालीन अर्थात् दक्षिण-पश्चिम मानसून. भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department – IMD) के अनुसार पूर्वोत्तर मानसून  अक्टूबर से दिसम्बर  तक चलता है. इस अवधि में तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश के साथ-साथ तेलंगाना और कर्नाटक के कुछ भागों में वृष्टिपात होता है. पूर्वोत्तर और दक्षिण-पश्चिम मानसून में अंतर जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि पूर्वोत्तर मानसून की दिशा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम होती है. उसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा इसके ठीक उल्टी अर्थात् दक्षिण-पश्चिम से पूर्वोत्तर होती है. पूर्वोत्तर मानसून कब आता ...

वर्षा के TYPES, REASONS, MEASUREMENT और DISTRIBUTION

  वर्षा (Rain) के लिए दो बातों का होना अत्यंत आवश्यक है – वायु में पर्याप्त   जलवाष्प   का होना और ऐसे साधन का होना जिससे वाष्पयुक्त वायु ठंडी होकर घनीभूत (condensate) हो सके. आज हम वर्षा के विषय विस्तृत जानकारी (information) आपको देने वाले हैं. आज हम इस लेख में पढेंगे कि वर्षा कैसे होती है, इसके कितने प्रकार (types) हैं, इसे कैसे मापा (measure) जाता है और इसका वितरण (distribution) विश्व में कहाँ-कहाँ किस प्रकार है आदि. वाष्प से युक्त वायु निम्नलिखित प्रकार से ठंडी हो सकती है – गर्म वायु का हल्की होकर ऊपर उठना और ऊपर जाकर फ़ैल जाना. गर्म वायु का ऊँचे पर्वतों के संपर्क में आकर उनके ऊपर चढ़ना और ऊँचाई पर जाकर हिमाच्छादित भाग के संपर्क में ठंडा होना. गर्म वायु का ठन्डे अक्षांशों की ओर बढ़ना. गर्म वायु का ठंडी वायु या ठंडी जलधारा के संपर्क में आने से ठंडा हो जाना. वर्षा के प्रकार (TYPES OF RAIN) पृथ्वी पर होने वाली वर्षा मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है – वाहनिक (Convectional Rain) पर्वतीय वर्षा (Relief Rain) चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rain) वाहनिक वर्षा वाहनिक वर्षा (Convectio...