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वायुभार – INFORMATION ABOUT PRESSURE OF THE AIR

 पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति (gravitational power) के चलते प्रत्येक वस्तु में अपना एक विशेष भार होता है. ऐसी वस्तुओं में भी, जो देखी नहीं जा सकतीं, भार (दबाव) मिलता है. वायु एक ऐसी ही वस्तु है. पृथ्वी को घेरती हुई सैंकड़ों मील की मोटी परत में यह विस्तृत है. इसकी सबसे अधिक घनी तह (fold) पृथ्वी के नजदीक मिलती है. जैसे-जैसे हम पृथ्वी-तल से ऊपर (ऊँचाई को) बढ़ते जाते हैं, वायु पतली होती जाती है. ऊपर जाकर इसका फैलाव बढ़ जाता है. इसलिए धरातल के नजदीक वायुभार (air pressure) सबसे अधिक और वायुमंडल की ऊपरी परत में यह सबसे कम मिलता है.

वायुभार की माप (MEASUREMENT OF PRESSURE)

वायुभार एक विशेष प्रकार के यंत्र से नापा जाता है और यह इंचों में या मिलीबार में (1000 mb=29.53 inches) लिया जाता है. इस यंत्र को वायुभारमापक यंत्र या वायुभारमापी (Barometer) कहते हैं. समुद्रतल पर औसत वायुभार 29.9 inch रहता है.

वायुभार को प्रभावित करने वाले करक (FACTORS AFFECTING PRESSURE)

धरातल पर वायुभार सब जगह नहीं है. इसे प्रभावित करने वाली प्रमुख बातें ये हैं –

तापक्रम

इसका वायुभार पर सीधा प्रभाव पड़ता है. ताप पाकर वायु गर्म होती है, ऊपर उठकर फ़ैल जाती है, उसका आयतन बढ़ जाता है, अतः उसका घनत्व कम हो जाता है. ऐसी वायु हल्की हो जाती और उसका भार कम हो जाता है. यदि किसी स्थान का तापक्रम अधिक है तो वहाँ का air pressure कम होगा. यदि तापक्रम कम है तो air pressure अधिक होगा. ठंडी वायु सघन होती है और सघनता से किसी वस्तु का भार बढ़ता है. शीत ऋतु में इसी कारण ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा वायुभार अधिक रहता है और रात में दिन की अपेक्षा कम.

ऊँचाई

वायुमंडल (atmosphere) में वायु की कई परतें हैं. नीचे की परतों की रचना भारी गैसों से हुई है और ऊपर की परतों की रचना अपेक्षाकृत हल्की गैसों से. फिर नीचे की परतों पर ऊपर की परतों का बोझ है. अतः धरातल के समीप वायुभार अधिक है और यह अधिक ऊँचाई के साथ कम होता जाता है. प्रत्येक 900 फुट की ऊँचाई पर 1 इंच air pressure कम हो जाता है. 19,000 फुट की ऊँचाई पर वायुभार समुद्रतल (Sea level) का आधार रह जाता है. कम वायुभार में मनुष्य के फेफड़े पर जोर पड़ता है और वह बेहोश हो जाता है और उसकी नाक से खून बहने लगता है.

जलवाष्प

वायु जब जलवाष्प (water vapour) से युक्त रहती है तो वह शुष्क वायु की अपेक्षा हल्की होती है और इस तरह उसका भार कम रहता है. वायु में जितना ही अधिक जलवाष्प रहेगा, वायुभार उतना ही कम होगा, क्योंकि जलवाष्प वायु से हल्का होता है. बरसात में air pressure के घटने का यही कारण है.

वायुभार पर प्रभाव डालने वाली अन्य बातें पृथ्वी का परिभ्रमण, आँधियों-तूफानों का कुछ समय तक चलते रहना और अन्य स्थानीय कारण है.

ग्लोब पर वायुभार की पट्टियाँ (PRESSURE BELTS OVER THE GLOBE)

vayudab_earthविश्व के वायुभार का प्रारंभिक अध्ययन ग्लोब पर होना चाहिए और तब मानचित्र पर (जहाँ यह समभार रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है). ऊपर दिए गए चित्र में नीचे ग्लोब पर वायुभार की पट्टियाँ दिखाई गई हैं. इसमें जल और स्थल भाग का ध्यान न रखकर एक सामान्य अध्ययन प्रस्तुत किया गया है.

विषुवत् रेखा पर निम्नभार प्रदेश

यहाँ सूर्य सदैव लम्बरूप चमकता रहता है और पूरे वर्ष अत्यधिक गर्मी पड़ती है जिसके फलस्वरूप वायु गर्म होकर ऊपर उठती है और वायुभार कम हो जाता है. विषुवत् रेखा से 5° उ. और द. अक्षांशों तक की इस पट्टी को शांत क्षेत्र (Belt of Calms या Doldrum) भी कहते हैं क्योंकि यहाँ वायु की गति संवाहनिक (नीचे से ऊपर की ओर) रहती है.

कर्क रेखा के उत्तर और मकर रेखा के दक्षिण उच्च-भार प्रदेश

विषुवत् रेखीय गर्म भागों से ऊपर उठी हुई वायु फैलकर दोनों गोलार्द्धों में 30°-35° अक्षांशों के बीच नीचे उतरने लगती है. वायु के लगातार उतरने के कारण नीचे की वायु पर भार बढ़ता जाता है और वहाँ उच्च भार की पट्टी स्थापित हो जाती है. वहाँ वायु की गति ऊपर से नीचे की ओर रहती है. उन्हें उप-उष्णक्षेत्रीय उच्चभार प्रदेश (Sub-tropical High Pressure Belts) कहते हैं.

ध्रुवीय वृत्तों के पास निम्नभार प्रदेश

air_pressure_vayudaab

60° अक्षांश के पास तापक्रम कम होते हुए भी निम्न होने का प्रमुख कारण पृथ्वी का परिभ्रमण (rotation of the earth) है. परिभ्रमण के चलते ध्रुवों से वायु सिमटकर विषुवत् रेखा की ओर खिसकती है और इन अक्षांशों में वायु की कमी हो जाती है जिससे भार घट जाता है.

ध्रुवों पर उच्चभार-प्रदेश

सूर्य की किरणें आधे साल तक ही और वह भी एकदम तिरछी मिलने के कारण वर्ष-भर ध्रुवों पर अत्यधिक सर्दी पड़ती है जिसके कारण वायु ठंडी रहती है और इस कारण वायुभार उच्च रहता है. ध्रुवीय उच्च-भार प्रदेशों से वायु विषुवत् रेखा की ओर चला करती है.

वायुभार की उपर्युक्त पट्टियाँ अक्षांश रेखाओं (latitude lines) के अनुसार हैं. इनसे वायुभार के वास्तविक वितरण की जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है. ये ऋतु के साथ उत्तर-दक्षिण हटती या खिसकती भी रहती हैं.

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