Thursday, October 8, 2020

SOLAR SYSTEM IN HINDI -सौरमंडल के ग्रह (PLANETS)

 वैसे तो हमने बचपन में सौरमंडल (solar system) के बारे में हमेशा school books में पढ़ा है मगर आज भी competitive exams में सौरमंडल से सम्बंधित ऐसे टेढ़े-टेढ़े सवाल पूछे जाते हैं जिन्हें हल करने में हमारे पसीने छूट जाते हैं. आज मैं सौरमंडल व planets से सम्बंधित उन्हीं तथ्यों को आपके सामने रखूँगा जो आपके काम आ सके. 

SOLAR SYSTEM IN HINDI -सौरमंडल में ग्रह (PLANETS)

solar system in hindi

बुध (MERCURY)

१. यह सूर्य के सबसे निकट है (nearest to the sun).

२. यह सबसे छोटा ग्रह है (smallest planet)

३. अपनी धुरी (axis) पर 58.65 दिल में एक घूमता है.

४. यह सूर्य के चारों ओर 88 दिन में एक बार चक्कर (rotation) लगाता है.

५. यहाँ दिन अत्यधिक गर्म और रातें बर्फीली होती हैं.

६. परिमाण (mass) में यह पृथ्वी का 18वां भाग है.

७. इसका गुरुत्वाकर्षण (gravity) पृथ्वी का 3/8 भाग है.

शुक्र (VENUS)

१. यह ग्रहों में पृथ्वी के निकटतम (nearest to the earth) है.

२. यह सौरमंडल में सूर्य से दूसरे निकटतम स्थान पर है.

३. यह “शाम का तारा- evening star” और “सुबह का तारा- morning star” के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध है.

४. यह सबसे गर्म ग्रह है (hottest planet) —लोग बुध को सबसे गर्म ग्रह मानने की गलती कर देते हैं क्योंकि वह सूर्य के सबसे नजदीक है.

५. यहाँ रात तथा दिन के तापमान (temperature) लगभग समान होते हैं.

६. शुक्र ग्रह के वायुमंडल में 90-95 % CO2 है.

७. इसका कोई उपग्रह (satellite) नहीं है.

८. इसे पृथ्वी की बहन (sister planet of the earth) भी कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी और शुक्र के कई लक्षण (features) एक समान हैं (भार, आकार etc)…

९. यह सूर्य की परिक्रमा 225 दिन में पूरी करता है.

१०. इसके चारों और Sulfuric Acid के जमे हुए बादल हैं. 

मंगल (MARS)

1. यह सौरमंडल में सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित है.

२. इसके दो उपग्रह हैं – फोबस और डीमोस (Phobos and Deimos)

३. सबसे ऊंचा पर्वत “निक्स ओलम्पिया” (Nix Olympia)  है जो एवरेस्ट से भी तीन गुना ऊँचा है.

४. इस ग्रह को  “लाल ग्रह” (red planet)  भी कहते हैं.

५. सूर्य से इसकी दूरी 22.79 cr km. है.

६. मंगल के दो ध्रुव (poles) हैं तथा यहाँ भी पृथ्वी की भांति ऋतु परिवर्तन (climate change) होता है. ऐसा पृथ्वी की तरह इसकी धुरी झुकी होने के कारण होता है.

बृहस्पति (JUPITER)

1. यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है.

२. यह सूर्य से पाँचवे स्थान पर है.

३. इसका घनत्व (density) पृथ्वी के घनत्व का एक चौथाई है.

४. यह सूर्य की परिक्रमा (orbit)  में 11.9 वर्ष लगाता है.

५. इसका द्रव्यमान सौरमंडल के सभी ग्रहों का 71% एवं आयतन (volume) उनका डेढ़ गुना है.

६. यह तारों की तरह सूर्य से प्राप्त ऊर्जा (energy) से दोगुनी या तिगुनी ऊर्जा उत्सर्जित (release) करता है.

७. इसकी अपनी रेडियो उर्जा (radio energy) है.

८. इसके वायुमंडल  में अधिकांशतः हाइड्रोजन (hydrogen) और हीलियम (helium) गैसें हैं.

९. इसके 79 उपग्रह (satellites) हैं.

१०. शनि के समान इसके उपग्रहों में कुछ विपरीत तो कुछ अनुकूल दिशा में परिक्रमा करते हैं.

शनि (SATURN)

१. यह नंगी आँखों द्वारा दिखने वाला सबसे दूर का ग्रह (farthest planet) है.

२. यह बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है.

३. इसके उपग्रह हैं – 82 (अभी तक माना जाता रहा है कि सौर मंडल में जिस ग्रह के पास सबसे ज्यादा चंद्रमा हैं, वह ग्रह वृहस्पति (79 चन्द्रमा) है. परन्तु पिछले दिनों शनि के 20 नए चंद्रमाओं का पता चला जिससे इस ग्रह की चंद्रमाओं की पूर्ण संख्या 82 हो गई है अर्थात् अब शनि सबसे अधिक चंद्रमाओं वाला ग्रह हो गया है. इस प्रकार की घोषणा पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के क्षुद्र ग्रह केंद्र ने की) Updated : October, 2019

४. इसका व्यास (diameter) 1,20,0000 कि.मी. है.

५. यह सूर्य की परिक्रमा 29.5 वर्ष में पूरी करता है.

६. इसका सबसे बड़ा उपग्रह टाइटन (Titan) है.

७. यह सूर्य से छठे स्थान पर स्थित है.

८. इसका घनत्व पृथ्वी से कम है.

९. इसके उपग्रह “टाइटन” पर नाइट्रोजन वाला वायुमंडल है.

अरुण (URANUS)

१. यह ग्रह सूर्य से सातवें स्थान  पर स्थित है.

२. इसके 15 उपग्रह हैं.

३. इसके चारों और पाँच बहुत धुँधले वलय (rings) अल्फ़ा (alpha), बीटा (beta), गामा (gamma), डेल्टा (delta) और इप्सिलान (epsilon) के हैं.

४. इसके वायुमंडल में मिथेन गैस (methane gas) हैं.

५. इस ग्रह की खोज (discovery) 1781 ई. में William Herschel ने की थी.

६. यह 84 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करता है.

७. यह एकमात्र ऐसा planet है जो एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक अपने परिक्रमा कक्ष (orbit) में लगातार सूर्य के सामने रहता है.

वरुण (NEPTUNE)

१. यह सूर्य से आठवाँ सबसे दूर स्थित planet है (farthest from the sun).

२. “ट्राइटन (triton)” और “Proteus” दो उपग्रह इसके सबसे बड़े उपग्रहों में से हैं. टाइटन उपग्रह पर वायुमंडल है. इसमें मुख्यतः नाइट्रोजन व्याप्त है.

३. यह सौरमंडल का तीसरा पिंड (third body) है, जहाँ जागृत ज्वालामुखी (active volcano) पाया गया है.

यम (PLUTO)

१. यह नव अण्वेषित कुईपर बेल्ट का एक बड़ा पिंड है.

२. प्लूटो बौने ग्रह (dwarf planet) की श्रेणी में आता है.  अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने 3 सितम्बर 2006 को ऐलान किया कि प्लूटो ग्रह नहीं है.

३. इसका व्यास 2,376.6 कि.मी. है.

४. यह सूर्य से 3.67 बिलियन मील दूर है और यह सूर्य की परिक्रमा 248 वर्ष में पूरी करता है.

६. प्लूटो के पाँच ज्ञात उपग्रह हैं – शैरन (Charon) सबसे बड़ा है.

७. 1930 में अमेरिकी खगोलशास्त्री Clyde Tombaugh ने प्लूटो को खोज निकाला और इसे सौर मण्डल का नौंवा ग्रह माना था.

पृथ्वी (EARTH)

१. पृथ्वी का भूमध्यरेखीय व्यास (equatorial diameter) 12,757 कि.मी. (7,927 मील) एवं ध्रुवीय व्यास (polar diameter) 12,714 कि.मी. (7,900 मील) है.

२. पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि (equatorial circumference) 40, 075 किलोमीटर (24, 900 मील) है.

३. पृथ्वी 107160 कि.मी. प्रति घंटे की गति (speed per hour) से 365 दिन, 5 घंटे, 48 मि. एवं 46 सेकंड में सूर्य का चक्कर लगाती है.

४. पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर 1610 कि.मी. प्रति घंटे की गति से 23 घंटे 56 मिनट एवं 4 सेकंड में एक चक्कर लगाती है.

५. पृथ्वी का 71% भाग जलमंडल (hydrosphere) एवं 29% भाग स्थलमंडल (lithosphere) है.

६. पृथ्वी की दैनिक घूर्णन गति के कारण दिन एवं रात तथा वार्षिक परिभ्रमण गति के कारण ऋतु परिवर्तन होता है.

७. पृथ्वी का परिभ्रमण पथ दीर्घ (Elliptical) है एवं पृथ्वी तथा सूर्य के बीच की दूरी में परिवर्तन होता रहता है. यह दूरी 3 जनवरी को न्यूनतम (minimum) एवं 4 जुलाई को अधिकतम (maximum) होती है.

८. न्यूनतम दूरी की अवस्था को उपसौर (Perihelion) एवं अधिकतम दूरी की अवस्था को सूर्योच्च (Aphelion) कहा जाता है.

९. पृथ्वी अपने कक्ष तल (Plane of orbit) के साथ 66½° कोण बनाती है.

१०. 21 June को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें 90° लम्बवत् पड़ती हैं, अतः इस तिथि को उत्तरी गोलार्ध में दिन की अवधि सर्वाधिक लम्बी होती है जिसे Summer Solstice कहा जाता है.

११. इसी प्रकार 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं जिसे Winter Solstice कहा जाता है और इस तिथि को दक्षिणी गोलार्ध (south hemisphere) में दिन की अवधि सर्वाधिक लम्बी होती है.

१२. 21 मार्च एवं 23 सितम्बर को विषुवत् रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं. इस दिन पृथ्वी पर सभी जगह दिन एवं रात को अवधि समान (12-12 घंटे) होती है.

वायुमंडल का संगठन और उसकी संरचना – ATMOSPHERE IN HINDI

 वैसे तो हमने स्कूल की किताबों (NCERT, NIOS, other board textbooks) में वायुमंडल (atmosphere) के बारे में कई बार पढ़ा है मगर आज भी competitive exams में वायुमंडल से सम्बंधित ऐसे टेढ़े-टेढ़े सवाल पूछे जाते हैं जिन्हें हल करने में हमारे पसीने छूट जाते हैं. आज मैं वायुमंडल क्या है, उसकी रचना, संगठन/संघटन, उसकी रासायनिक संरचना (chemical composition), प्रमुख गैसें (gases), उसकी परतों (layers) से सम्बंधित उन्हीं तथ्यों को आपके सामने Hindi भाषा में रखूँगा जो आपके काम आ सके.

ATMOSPHERE IN HINDI – वायुमंडल के विषय में जानकारी

वायुमंडल

 

 

वायुमंडल की परिभाषा

पृथ्वी के चारों और लिपटा हुआ गैसों का विशाल आवरण (giant cover of gases) जो पृथ्वी का अखंड अंग है और उसे चारों तरफ से घेरे हुए हुए है, वायुमंडल (Atmosphere) कहलाता है. जलवायु वैज्ञानिक क्रिचफिल्ड के अनुसार वायुमंडल अपने वर्तमान स्वरूप में 58 से 50 करोड़ वर्ष पूर्व अर्थात् कैम्ब्रियन युग  (Cambrian era) में आया. वायुमंडल का भार 5.6×1025 टन है एवं इसके भार का लगभग आधा भाग धरातल से 5500 किमी. की ऊँचाई पर पाया जाता है. आधुनिक अनुसंधानों से स्पष्ट होता है कि वायुमंडल की अंतिम ऊँचाई (विस्तार) 16 हजार कि.मी. से 32 हज़ार किलोमीटर के बीच है. वायुमंडल का 50% भाग इसके 5 1/2 कि.मी. की ऊँचाई तक, 75% भाग 16 कि.मी. के ऊँचाई तक एवं 99% भाग 32 कि.मी. ऊँचाई तक स्थित है.

वायुमंडल का संगठन

वायुमंडल का संगठन/संघटन (Composition of atmosphere) निम्नलिखित तत्वों से हुआ है  –

गैस (GASES)

भौतिक दृष्टि से वायुमंडल विभिन्न गैसों का सम्मिश्रण है. 10 प्रमुख गैस वायुमंडल के संगठन/संघटन (atmosphere composition) के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं –

गैसें (Gases)आयतन (%)स्रोत
नाइट्रोजन78.03जैविक
ऑक्सीजन20.99जैविक
आर्गन0.93रेडियोलॉजी
कार्बन डाईऑक्साइड0.03जैविक, औद्योगिक
हाइड्रोजन0.01जैविक, प्रकाश रसायनिक
नियोन0.0018आतंरिक
हीलियम0.0005रडियोलॉजी
क्रिप्टान0.0001आतंरिक
जेनान0.000005आतंरिक
ओजोन0.0000001प्रकाश रसायनिक

 

प्रमुख गैसें 

नाइट्रोजन (NITROGEN)

  • यह जैविक रूप से निष्क्रिय और भारी गैस (gas) है.
  • इसका चक्रण वायुमंडल, मृदामंडल और जैवमंडल में अलग-अलग होता है.
  • राइजोबियम बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में ग्रहण करता है.
  • यह नाइट्रिक ऑक्साइड के रूप में अम्ल वर्षा (Acid Rain) के लिए उत्तरदाई है.

ऑक्सीजन (OXYGEN)

  • यह प्राणदायिनी गैस है.
  • इस भारी गैस का संघनन वायुमंडल के नीचले भाग में है.

कार्बन डाईऑक्साइड (CARBON DIOXIDE)

  • पौधे कार्बन डाईऑक्साइड से ग्लूकोज और कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं.
  • विविध कारणों से इस गैस की सांद्रता (Gas concentrations) में वृद्धि के कारण ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न हो रही है.

ओजोन (OZONE)

  • वायुमंडल में अति अल्प मात्र में पाए जाने वाले ओजोन का सर्वाधिक सांद्रण 20-35 कि.मी. की ऊँचाई पर है.
  • ओजोन सूर्य से आने वाली घातक पराबैगनी किरणों (UV rays) को रोकती है.
  • वर्तमान में CFC एवं अन्य ओजोन क्षरण पदार्थों की बढ़ती मात्र के कारण ओजोन परत (ozone layer) का क्षरण एक गंभीर समस्या के रूप में उभरी है.
  • गैसों में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड आदि भारी गैसें (heavy gases) हैं जबकि शेष गैसें हलकी गैसें (light gases) हैं और वायुमंडल के ऊपरी भागों में स्थित हैं.
  • कार्बन डाईऑक्साइड एवं ओजोन अस्थायी गैसे हैं जबकि नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और नियोन स्थायी गैसें हैं.

जलवाष्प (WATER VAPOUR)

  • वायुमंडल में आयतानुसार 4% जलवाष्प की मात्र सदैव विद्दमान रहती है.
  • जलवाष्प की सर्वाधिक मात्र भूमध्य रेखा के आसपास और न्यूनतम मात्र ध्रुवों के आसपास होती है.
  • भूमि से 5 किमी. तक के ऊंचाई वाले वायुमंडल में समस्त जलवाष्प का 90% भाग होता है.
  • जलवाष्प सभी प्रकार के संघनन एवं वर्षण सम्बन्धी मौसमी घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती है.
  • ज्ञातव्य है कि वायुमंडल में जलमंडल का 0.001 % भाग सुरक्षित रहता है.

धूल कण (DUST MITES)

  • इसे एयरोसोल भी कहा जाता है. विभिन्न स्रोतों से वायुमंडल में जानेवाले धूलकण आर्द्रता ग्राही नाभिक का कार्य करते हैं.
  • धूलकण सौर विकिरण के परावर्तन और प्रकीर्णन द्वारा ऊष्मा अवशोषित करते हैं.
  • वर्णात्मक प्रकीर्णन के कारण आकाश का रंग नीला और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय-समय दिखने वाला रंग धूलकणों की ही देन है.
  • ऊषाकाल एवं गोधूली की तीव्रता एवं उसकी अवधि के निर्धारण में धूलकणों की प्रमुख भूमिका होती है.
  • धूलकण एवं धुएँ के कण आद्रता ग्राही नाभिकों का भी कार्य करते हैं.
  • धूलकणों का सर्वाधिक जमाव ऊपोष्ण व औद्योगिक क्षेत्रों में एवं न्यूनतम जमाव ध्रूवों के निकट पाया जाता है.

वायुमंडल की संरचना

वायुमंडल की संरचना के सम्बन्ध में 20वीं शताब्दी में विशेष अध्ययन किये गए हैं. इस दिशा में तिज्रांस-डि-बोर, सर नेपियर शाॅ, फ्रैडले, कैनली, फेरेब आदि वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा है. तापमान के उर्ध्वाधर वितरण के आधार पर वायुमंडल के प्रमुख परतें (important layers) निम्नलिखित हैं – –

क्षोभमंडल (TROPOSPHERE)

  • ट्रोपोस्फीयर/विक्षोभ प्रदेश/Troposphere नामक शब्द का प्रयोग तिज्रांस-डि-बोर ने सर्वप्रथम किया था.
  • वायुमंडल की इस सबसे नीचली परत (bottom layer) का भार सम्पूर्ण वायुमंडल का लगभग 15% है.
  • धरातल से इस परत की औसत ऊँचाई 10 कि.मी. है. भूमध्य रेखा पर ऊँचाई 18 कि.मी. और ध्रुवों पर 8-10 कि.मी. है.
  • ग्रीष्म ऋतु में इस स्तर की ऊँचाई में वृद्धि और शीतऋतु में कमी पाई जाती है.
  • इस मंडल की प्रमुख विशेषता है प्रति 165 मी. की ऊँचाई पर तापमान में 1 डीग्री सेल्सियस की गिरावट आना. इसमें सर्वाधिक क्षैतिज और लम्बवत तापान्तर होता है.
  • इस भाग में गर्म और शीतल होने का कार्य विकिरण, संचालन और संवहन द्वारा होता है.
  • इस मंडल को परिवर्तन मंडल भी कहते हैं. समस्त मौसमी घटनाएँ भी इसी मंडल में घटित होती हैं.
  • इस मंडल की एक और विशेषता यह है कि इसके भीतर ऊँचाई में वृद्धि के साथ वायुवेग में भी वृद्धि होती है.
  • संवहनी तरंगों तथा विक्षुब्ध संवहन के कारण इस मंडल को कर्म से संवहनी मंडल और विक्षोभ मंडल भी कहते हैं.

क्षोभ सीमा (TROPOPAUSE)

  • क्षोभ मंडल और समताप मंडल को अलग करनेवाली 1.5 कि.मी. मोटे संक्रमण को ट्रोपोपॉज या क्षोभ सीमा (tropopause) कहा जाता है.
  • क्षोभ सीमा (tropopause) ऊँचाई के साथ तापमान का गिरना बंद हो जाता है.
  • इसकी ऊँचाई भूमध्य रेखा पर 17-18 कि.मी. (तापमान- 80 डिग्री सेल्सियस) ध्रुवों पर 8-10 कि.मी. (तापमान -45 डिग्री सेल्सियस)

समताप मंडल (STRATOSPHERE)

  • क्षोभ सीमा से ऊपर 50 कि.मी. की ऊँचाई तक समताप मंडल का विस्तार है.
  • कुछ विद्वान् ओजोन मंडल को भी इसी में समाहित कर लेते हैं.
  • इस मंडल में तापमान में कोई परिवर्तन नहीं होता और संताप रेखाएँ समानंतर न होकर लम्बवत होते हैं.
  • यहाँ संघनन से विशिष्ट प्रकार के “मुकताभ मेघ” की उत्पत्ति होती है और एवं गिरने वाले बूदों को Noctilucent कहते हैं.
  • इस मंडल की मोटाई ध्रुवों पर सर्वाधिक और विषुवत रेखा पर सबसे कम होती है.
  • शीत ऋतु में 50 डिग्री से 60 डिग्री अक्षाशों के बीच समताप मंडल सर्वाधिक गर्म होता है.
  • यह मंडल मौसमी घटनाओं से मुक्त होता है, इसलिए वायुयान चालकों के लिए उत्तम होता है.
  • 1992 में समताप मंडल (stratosphere) की खोज एवं नामाकरण तिज्रांस-डि-बोर ने किया था.

ओजोन मंडल (OZONOSPHERE)

  • समताप मंडल के नीचले भाग में 15 से 35 कि.मी. के बीच ओजोन गैस (Ozone gas) का मंडल होता है.
  • ओजोन गैस (Ozone gas) सूर्य से निकलने वाली अतिप्त पराबैगनी किरणों (UV rays) को सोख लेती है.
  • इस स्तर में प्रति कि.मी. 5 डिग्री सेल्सियस की दर से तापमान बढ़ता है.
  • इसी अन्य तापमान के कारण वायुमंडल में ध्वनि एवं नीरवता के वाले उत्पन्न होते हैं.
  • वर्तमान में ओजोन पार्ट के क्षरण की समस्या के निवारण के लिए मोंट्रियल प्रोटोकॉल (montreal protocol) एवं अन्य उपायों के जरिये ओजोन क्षरक पदार्थों आर कड़ाई से रोक लगाई जा रही है. ग्लोबल वार्मिंग के बारे में यहाँ पढ़ें >> ग्लोबल वार्मिंग

मध्य मंडल (MESOPHERE)

  • 50 से 80 कि.मी. की ऊँचाई वाला वायुमंडलीय भाग मध्य मंडल (mesophere) कहलाता है जिसमें तापमान में ऊँचाई के साथ ह्रास होता है.
  • 80 कि.मी. की ऊँचाई पर तापमान -80 डिग्री सेल्सियस हो जाता है, इस न्यूनतम तापमान की सीमा को “मेसोपास” कहते हैं.

आयन मंडल (IONOSPHERE)

  • धरातल से 80-640 कि.मी. के बीच आयन मंडल का विस्तार है.
  • यहाँ पर अत्यधिक तापमान के कारण अति न्यून दबाव होता है. फलतः पराबैगनी फोटोंस (UV photons) एवं उच्च वेगीय कणों के द्वारा लगातार प्रहार होने से गैसों का आयनन (Ionization) हो जाता है.
  • आकाश का नील वर्ण, सुमेरु ज्योति, कुमेरु ज्योति तथा उल्काओं की चमक एवं ब्रह्मांड किरणों की उपस्थिति इस भाग की विशेषता है.
  • यह मंडल कई आयनीकृत परतों में विभाजित है, जो निन्मलिखित हैं :–

i) D का विस्तार 80-96 कि.मी. तक है, यह पार्ट दीर्घ रेडियो तरंगों को परावर्तित करती है.

ii) E1 परत (E1 layer) 96 से 130 कि.मी. तक और E2 परत 160 कि.मी. तक विस्तृत हैं. E1 और E2 परत मध्यम रेडियो तरंगों को परावर्तित करती है.

iii) F1 और F2 परतों का विस्तार 160-320 कि.मी. तक है, जो लघु रेडियो तरंगो (radio waves) को परावर्तित करते हैं. इस परत को एप्लीटन परत (appleton layer) भी कहते हैं.

iv) G परत का विस्तार 400 कि.मी. तक है. इस परत (layer) की उत्पत्ति नाइट्रोजन के परमाणुओं व पराबैगनी फोटोंस (UV photons) की प्रतिक्रिया से होती है.

बाह्य मंडल (EXOSPHERE)

  • सामान्यतः 640 कि.मी. के ऊपर बाह्य मंडल का विस्तार पाया जाता है.
  • यहाँ पर हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की प्रधानता है.
  • अद्यतन शोधों के अनुसार यहाँ नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम तथा हाइड्रोजन की अलग-अलग परतें (different layers) भी होती हैं.
  • लेमन स्पिट्जर ने इस मंडल पर विशेष शोध किया है.

वायुमंडल की रासायनिक संरचना

1992 में मार्सेल एवं निकोलेट ने रासायनिक आधार पर वायुमंडल को दो स्थूल भागों में विभाजित किया –

सममंडल

  • इसकी औसत ऊँचाई सागर ताल से 90 कि.मी. तक है जिसमें क्षोभमंडल, समताप मंडल और मध्य मंडल शामिल है.
  • इस मंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, आर्गन, कार्बन डाईऑक्साइड, नियोन, हीलियम व हाइड्रोजन आदि गैस सदैव सामान अनुपात में रहते हैं.

विषम मंडल

इस मंडल में मिलने वाली विभिन्न गैसीय परतों एवं गैसों के अनुपात में भिन्नता पाई जाती है. इसके निम्नलिखित भाग हैं –

  • आण्विक नाइट्रोजन परत  – 90-200 कि.मी. की ऊँचाई तक.
  • आण्विक ऑक्सीजन परत – 200-1100 कि.मी. की ऊँचाई तक.
  • आण्विक हीलियम परत – 1100-3500 कि.मी. की ऊँचाई तक.
  • आण्विक हाइड्रोजन परत – 3500-10000 किमी. की ऊँचाई तक.

इस प्रकार वायुमंडल के इस लेख (essay) में हमने वायुमंडल से सम्बंधित कई जानकारियाँ आपसे साझा कीं. आंकड़ें आपकी किताबों से अलग हो सकते हैं पर इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता. आपने इस आलेख में वायुमंडल का संगठन/संघटन, प्रमुख गैसों के विषय में, वायुमंडल की रचना और उसकी विभिन्न परतों (different layers) के विषय में जाना. अंत में मैंने वायुमंडल की रासायनिक संरचना का भी जिक्र किया जिसे दो स्थूल भागों में विभाजित किया गया है.

मानव विकास सूचकांक क्या होता है? INFORMATION ABOUT HDI IN HINDI

मानव विकास को मानव विकास सूचकांक (Human Development Index, HDI) के रूप में मापा जाता है. इसे मानव विकास की आधारभूत उपलब्धियों पर निर्धारित एक साधारण समिश्र सूचक (composite indicator) के रूप में मापा जाता है और विभिन्न देशों द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संसाधनों तक पहुँच  के क्षेत्र में की गई उन्नति के आधार पर उन्हें श्रेणी (rank) प्रदान करता है. यह श्रेणी 0 से 1 के बीच के स्कोर पर आधारित होता है, जो एक देश, मानव विकास के महत्त्वपूर्ण सूचकों में अपने रिकॉर्ड से प्राप्त करता है. मानव विकास सूचकांक UNDP (United Nation Development Programme) द्वारा नापा जाता है.  UNDP का headquarter न्यूयॉर्क में है. इसकी स्थापना 1965 को हुई थी. चलिए जानते हैं मानव विकास सूचकांक क्या होता है और इसको मापने के लिए किन पैमानों (measures) का प्रयोग किया जाता है?

स्वास्थ्य

स्वास्थ्य के सूचक को निश्चित करने के लिए जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा को चुना गया है. इसका अर्थ यह है कि लोगों को लम्बा एवं स्वास्थ्य जीवन व्यतीत करने का अवसर मिलता है. जितनी उच्च जीवन-प्रत्याशा होगी, उतनी ही अधिक विकास का सूचकांक (HDI) होगा.

शिक्षा

यहाँ पर शिक्षा का अभिप्राय प्रौढ़ साक्षरता दर तथा सकल नामांकन अनुपात से है. इसका अर्थ यह है कि पढ़ और लिख सकने वाले वयस्कों की संख्या तथा विद्यालयों में नामांकित बच्चों की संख्या अधिक होने से सूचकांक (index) में वृद्धि होती है.

संसाधनों तक पहुँच

संसाधनों तक पहुँच को करी शक्ति (अमेरिकी डॉलर में) के सन्दर्भ में मापा जाता है.

सूचकांक निर्मित करने के लिए प्रत्येक सूचक के लिए सर्वप्रथम न्यूनतम तथा अधिकतम मान निश्चित कर लेते हैं:

जन्म के समय जीवन प्रत्याशा: 25 वर्ष और 85 वर्ष

सामान्य साक्षरता दर: 0 प्रतिशत और 100 प्रतिशत

प्रतिव्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (PPP)

$100 अमेरिकी डॉलर और $40, 000 अमेरिकी डॉलर. इनमें से प्रत्येक आयाम को 1/3 भारिता (weights) दी जाती है. मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) इन सभी आयामों को दिए गए weights का कुल योग होता है. स्कोर, 1 के जितना निकट होता है, मानव विकास का स्तर उतना ही अधिक होता है. इस प्रकार 0.983 का स्कोर अति उच्च स्तर का, जबकि 0.268 मानव विकास का अत्यंत निम्न स्तर माना जायेगा.

2015 में भारत ने 130वाँ स्थान लाया और भारत का स्कोर था – –  0.609. Norway ने 1st rank, Australia ने 2nd रैंक और Switzerland 3rd स्थान प्राप्त किया.

प्राप्तियाँ और कमियाँ (Attainment and Shortfalls)

मानव विकास सूचकांक (HDI) मानव विकास में प्राप्तियों एवं कमियों को मापता है.

प्राप्तियाँ (ATTAINMENTS):

प्राप्तियाँ मानव विकास के प्रमुख क्षत्रों में की नई उन्नति की सूचक हैं. ये सर्वाधिक विश्वनीय माप नहीं है, क्योंकि ये वितरण (distribution) के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं देती.

कमियाँ (SHORTFALLS):

मानव गरीबी सूचकांक, मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) से सम्बंधित है और मानव विकास में कमियों को मापता है. इनमें कई पक्षों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे – 40 वर्ष कम आयु तक जीवित न रह पाने की संभाव्यता (feasibility), प्रौढ़ निरक्षरता दर (adult illiteracy rate), स्वच्छ जल तक पहुँच न रखने वाले लोगों की संख्या और अल्प्भार वाले छोटे बच्चों की संख्या (number of underweight children) आदि. मानव विकास सूचकांक इन पैमानों (measures) द्वारा संयुक्त अवलोकन कर के किसी देश में मानव विकास की स्थिति का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है.

चन्द्र ग्रहण कैसे होता है? INFORMATION ABOUT LUNAR ECLIPSE IN HINDI

 साधारणतः पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पूर्णतः गोलाकार दिखाई पड़ना चाहिए, किन्तु कभी-कभी अपवादस्वरूप चंद्रमा के पूर्ण बिम्ब पर धनुष या हँसिया के आकार की काली परछाई दिखाई देने लगती है. कभी-कभी यह छाया चाँद को पूर्ण रूप से ढँक लेती है. पहली स्थिति को चन्द्र अंश ग्रहण या खंड-ग्रहण (partial lunar eclipse) कहते हैं और दूसरी स्थिति को चन्द्र पूर्ण ग्रहण या खग्रास (total lunar eclipse) कहते हैं.

चंद्र ग्रहण कब लगता है?

चंद्रमा सूर्य से प्रकाश प्राप्त करता है. उपग्रह होने के नाते चंद्रमा अपने अंडाकार कक्ष-तल पर पृथ्वी का लगभग एक माह में पूरा चक्कर लगा लेता है. चंद्रमा और पृथ्वी के कक्ष तल एक दूसरे पर 5° का कोण बनाते हुए दो स्थानों पर काटते हैं. इन स्थानों को ग्रंथि कहते हैं. साधारणतः चंद्रमा और पृथ्वी परिक्रमण करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में नहीं आते हैं इसलिए पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर नहीं पड़ पाती है. किन्तु पूर्णिमा की रात्रि को परिक्रमण करता हुआ चंद्रमा पृथ्वी के कक्ष (orbit) के समीप पहुँच जाए और पृथ्वी की स्थिति सूर्य और चंद्रमा के बीच ठीक एक सीध में  हो तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है. चंद्रमा की ऐसी स्थिति को चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कहते हैं. पर सदा ऐसी स्थिति नहीं आ पाती क्योंकि पृथ्वी की छाया चंद्रमा के अगल-बगल होकर निकल जाती है और ग्रहण नहीं लग पाता. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगने की दो अनिवार्य दशाएँ हैं – चंद्रमा पूरा गोल चमकता हो और यह पृथ्वी के orbit के अधिक समीप हो.

UMBRA और PENUMBRA

सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. परछाई के एक शंकु को प्रच्छाया (Umbra) तथा दूसरे को खंड छाया या उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं. चंद्रमा पर पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) पड़ने से ही ग्रहण लगता है क्योंकि यह छाया सघन होने के कारण पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति के अनुसार कभी चाँद को आंशिक रूप से और कभी पूर्ण रूप से ढँक लेती है. ये स्थितियाँ क्रमशः अंश-ग्रहण तथा पूर्णग्रहण कहलाती हैं. अंश-ग्रहण कुछ ही मिनट तथा पूर्ण ग्रहण कुछ घंटों तक लगता है. चंद्रमा परिक्रमण करते हुए आगे बढ़ जाता है और पृथ्वी की छाया से मुक्त होकर फिर से सूर्य के प्रकाश से प्रतिबिम्बित होने लगता है.

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चन्द्र ग्रहण का DIAGRAM

प्रस्तुत चित्र को देखें जिसमें पृथ्वी की उपच्छायाएँ तथा प्रच्छाया दिखाई गई हैं. यदि कोई पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) में खड़ा होकर चंद्रमा को देखेगा तो उसको चंद्रमा द्वारा प्रच्छाया (Umbra) वाला कटा हुआ भाग दिखाई नहीं देगा तथा उसे आंशिक चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) ही दृष्टिगोचर होगा, किन्तु यदि वह पृथ्वी के प्रच्छाया क्षेत्र में खड़ा होकर चाँद को देखेगा तो उसे प्रच्छाया (Umbra) से पूर्ण रूप से ढँका होने के कारण चाँद पूर्ण ग्रहण के रूप में दिखाई देगा. पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) का चंद्रमा पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है.

चंद्रमा एक स्थान से पश्चिम से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है. सर्वप्रथम इसका पूर्वी भाग प्रच्छाया (Umbra) में जाता है. दूसरे स्थान तक पहुँचने में चन्द्रमा को 1 घंटा 1 मिनट लगता है और तीसरे स्थान तक 2 घंटा 42 मिनट. इस प्रकार प्रच्छाया (Umbra) के केंद्र में पहुँचने के लिए चंद्रमा को लगभग 2 घंटे और मुक्त होने में लगभग 3 घंटे लग जाते हैं. प्रच्छाया (Umbra) से निकल कर चंद्रमा उपच्छाया (Penumbra) में प्रवेश करता है किन्तु इसके प्रकाश में कोई विशेष अंतर नहीं आता.

औसतन प्रति दस वर्षों में 15 चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) घटित होते हैं. एक वर्ष की अवधि में अधिक से अधिक 3 और कम से कम शून्य चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगते हैं. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) के समय चंद्रमा एकदम काला न दिखाई देकर धुंधला लाल या ताम्बे के रंग का दृष्टिगोचर होता है. यह प्रकाश चंद्रमा से प्रतिबिम्बित नहीं होता वरन् सूर्य का होता है. सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के विपरीत भाग के वायुमंडल से परावर्तित होकर प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश हो जाता है जिसके कारण ग्रहण की अवस्था में चंद्रमा धुंधला हल्का लाल दिखाई देता है.

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